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तिहासकारों  का ऐसा  मानना है  कि शाहजहां अपने समय का बड़ा ही बहादुर ,लोकप्रिय एवं पराक्रमी शासक था साथ-ही-साथ वह मुग़ल साम्राज्य का सबसे  ख़र्चीला बादशाह था | उसने साम्राज्य विस्तार में कोई कसर नहीं छोड़ी | जिन देशों को जीता, उनकी प्रजा को भी लूट लिया | इस तरह उसके पास अगणित सम्पति इकट्ठी हो  गयी | 
                                                                            संग्रहीत पूँजी का किया जाये ? इसलिए इसके उपभोग में उसने खुद और अपनी पत्नी को शामिल किया | जीते-जी तो बैठने के लिए बहुमूल्य सम्पदा से निर्मित तख़्त-ए -ताउस बनवाया | मरने के  बाद दफ़न होने के लिए शानदार कब्र के रूप में ताजमहल बनवाया | शाहजहां को स्थापत्य कला में विशेष रूचि थी, इसी कारण उसने लाल पत्थरों से निर्मित लालकिला तथा जामा मस्जिद बनवाया | ये चीजो इतनी बेशकीमती थीं तथा बनाई गई ताकि उससे बढ़कर किसी और की प्रशंसा न हो सके |
                  तख़्त-ए ताउस (मोर पंख जैसा सिंहासन बनाते समय शाहजहां ने सोचा कि संसार में इससे बहुमूल्य और कोई चीज न रह जाये |  इस सिंहासन के शीर्ष पर लगाने के किये उसने ग्वालियर नरेश से कोहिनूर हीरा छीन लिया | तख्ते ताउस में सोने और जवाहरातों कि भरमार थी | मीनाकारी कि जगह बहुमूल्य  रंग-बिरंगे रत्न लगाये गए थे | उस समय उसकी कीमत बारह करोड़ आंकी गयी थी,जो आज के हिसाब से १००० करोड़ से भी अधिक होगी | 
             शाहजहाँ के मृत्यु के बाद यह कुछ दिन ही उसके बेटे औरंगजेब के पास रहा | बाद में यह मोहम्मद शाह को परास्त करके हो विपुल सम्पति हासिल की, उसमे तख़्त-ए-ताउस भी शामिल था | इसे लेकर वह वापस लौट रहा था कि कुर्द लुटेरों ने उसे घेर उसकी हत्या कर दी तथा नादिरशाह कि सारी सम्पति आपस में बाँट ली | तख़्त-ए-ताउस के भी टुकड़े हुए और आपस में उन लोगों ने बाँट लिए | इस घटना के कुछ दिनों बाद नादिरशाह के लडकों ने लुटेरों को पकड़ा और उनसे अपने बाप कि पूरी सम्पति उगलवा ली | जिसमें तख़्त-ए-ताउस के टुकड़े भी शामिल थे | उसे कैसे भी जोड़-गांठकर पहले जैसा बना लिया गया,  यद्यपि उसमें से आधे रत्न गायब थे | 
                                          अठारहवीं शताब्दी में तख़्त-ए-ताउस संयोग से अंग्रेजों के हाथ लग गया | अंग्रेजी अफसरानों द्वारा उसे पूर्ण गोपनियता से श्रीलंका के त्रिकोमाली बंदरगाह से हल्याँ में चढ़कर इंग्लैंड भेजा गया | ९ अगस्त सन १८८२ को पूर्वी अफ्रीका के पास यह जहाज समुद्री  चट्टानों (हिमखंडों) से टकराकर समुद्र के गर्भ में डूब गया और साथ ही तख़्त-ए-ताउस और उसके साथ रत्न भंडार भी | इसके बाद उसे समुद्र तल से निकालने के बहुतेरे प्रयत्न किये गए पर उसमे से यदा-कदा रत्न ही हाथ लगते रहे जिससे डूबने के क्षेत्र का तो पता चला पर तख़्त-ए-ताउस न मिला | 
                 सबसे महत्वपूर्ण और क्रूरतम बात  यह थी कि इसके स्तम्भ जो पाने के बने थे तथा इसमें हो पन्ने और रत्न लगाये गए थे उसे बाज़ार से नहीं ख़रीदा गया था बल्कि उसे प्राप्त करने के लिए अनेक सामंतों एवं धनवन्तों के सर कलम किये गए थे |
                                                                                               इसप्रकार, तख्ते ताउस समेत शाहजहाँ की दौलत और उसके द्वारा बनवाए गए इमारतों का हिसाब लगाया जाए तो प्रतीत होता है कि वह अपने ज़माने का 'धन कुबेर' था | 
                                          
                                                                   अरुण तिवारी 'प्रतीक'

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