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अक्सर मन सोचता है कि अगली सुबह ये आंखे खुले ही ना ...... खुली आँखों से देखे गए डरावने सपने , बहुत डराते है हर पल सताते है, आंखे नम कर जाते है । एक लंबा सा सफर है जिसका अंत होता नही दिखता , हमने खोजा भी बहुत पर सकून बाजारों में नही बिकता आएगी एक ठंडी सी सितारों से भरी चमचमाती रात , हम आसमा ओढ़कर सो जाएंगे , बंद आंखों से देखेंगे बचपन के वो ही हसीन सपने , वो परियो की बाते , वो नादानियों के किस्से एक पल में उस दुनिया मे फिर से लौट जाएंगे अकेली पड़ गई है जिंदगी इस भीड़ में , एक डर भी है जो आज है , वो हो ना कल? आये एक ऐसी रात जिसमे सुबह ना हो , हो सिर्फ सपने , कुछ अपने , कुछ मीठे पल आए एक ऐसी रात जिसमें सुबह ही ना हो


via Team Kartavya http://bit.ly/2XJ0IDU

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